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रविवार, 29 अगस्त 2021

बच्चों को कोरोना का खतरा डेंगू से भी कम', सरकार ने समझाया क्यों स्कूल भेजने से ना डरें पैरेंट्स

बच्चों को कोरोना का खतरा डेंगू से भी कम', सरकार ने समझाया क्यों स्कूल भेजने से ना डरें पैरेंट्स


'बच्चों को कोरोना का खतरा डेंगू से भी कम', सरकार ने समझाया क्यों स्कूल भेजने से ना डरें पैरेंट्स

दिल्ली समेत कई राज्यों ने स्कूलों के खोले जाने को लेकर आदेश जारी कर दिए हैं। वहीं कई राज्यों में अभी भी स्कूल खोलने का फैसला नहीं हो सका है। केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर सभी राज्यों को एक लेटर लिखा है। इस लेटर राज्यों से जल्द स्कूल खोलने और फिजिकल क्लासेस चलाने के लिए कहा गया है। साथ ही इस संबंध में विभिन्न दिशानिर्देश भी दिए गए हैं। केंद्र ने स्पष्ट कहा है कि कोरोना से ज्यादा तो बच्चों के डेंगू की चपेट में आने का खतरा रहता है। वहीं सड़क हादसों में भी लोग बड़ी संख्या में जान गंवाते हैं। लेकिन कभी सड़क हादसों या डेंगू के खतरे से स्कूल तो बंद नहीं किए जाते? 

केंद्र सरकार ने अपनी चिट्ठी में यह भी कहा है कि भारत उन चार-पांच देशों में है, जहां स्कूल 1.5 साल से अधिक समय से बंद हैं। अब बच्चों को जल्द से जल्द स्कूल वापस लाने की जरूरत है। चूंकि छोटे बच्चों में कोरोना का खतरा काफी कम है, ऐसे में पहले प्राइमरी स्कूलों को खोला जाना चाहिए। इस दौरान आईसीएमआर के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। प्राइमरी के बाद हायर क्लासेस के बच्चों को बुलाया जाना चाहिए। लेटर में कहा गया है कि विभिन्न राज्य सरकारें अभी भी सभी क्लासेस के लिए स्कूल नहीं खोल रही हैं। स्कूलों को कई तरह की चिंताएं हैं। इसमें सबसे बड़ी चिंता है कि बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी है। वहीं इस बात का भी डर है कि स्कूल कोरोना सुपर स्प्रेडर हो सकते हैं। थर्ड वेव और जहां स्कूल हैं, वहां पर कोरोना केसेज में तेजी आने का डर भी स्कूल खोलने से रोक रहा है। केंद्र ने लिखा है कि इस बात के वैश्विक सुबूत हैं कि स्कूलों को खोला जाना चाहिए। राज्य सरकारों को इस बारे में तत्काल विचार करना चाहिए और फिजिकल क्लासेस की शुरुआत करनी चाहिए। 

बच्चों को स्कूल भेजना पैरेंट्स की मर्जी पर होगा निर्भर
हालांकि केंद्र ने अपने लेटर में यह भी स्पष्ट कहा है कि बच्चों को स्कूल भेजना पूरी तरह से पैरेंट्स की मर्जी पर निर्भर होगा। इसमें कहा गया है कि वैसे तो बच्चे कोरोना से पूरी तरह से सुरक्षित हैं, लेकिन यह पैरेंट्स तय करेंगे कि वह अपने बच्चों को फिजिकल क्लास के लिए स्कूल भेजें या नहीं। जो बच्चें चाहें वो ऑनलाइन क्लास कर सकते हैं। इसलिए अटेंडेंस भी ऑप्शनल रहेगी। लेटर में स्कूल खोलने के लिए स्टाफ का 100 परसेंट वैक्सीनेटेड होना भी अनिवार्य नहीं बताया गया है।

बच्चों के लिए वैक्सीन का इंतजार कब तक?
केंद्र की तरफ से जारी इस लेटर में साफ कहा गया है कि स्कूल खोले जाने के लिए बच्चों के वैक्सीनेशन का इंतजार नहीं कर सकते। इसके मुताबिक वैक्सीनेशन का उद्देश्य लोगों को संक्रमण की अधिकता और मौत से बचाना है। वैसे भी बच्चों के कोरोना की चपेट में आने का खतरा बेहद कम है। लेटर में अमेरिका की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि 25 साल से कम आयुवर्ग के लोगों में कोरोना से मौत का खतरा अन्य लोगों की तुलना में काफी कम है। केंद्र द्वारा जारी पत्र के मुताबिक बच्चों के डेंगू की चपेट में आने का खतरा ज्यादा रहता है। लेकिन कभी डेंगू के खतरे के चलते स्कूल तो बंद नहीं किए जाते हैं। केंद्र की इस चिठ्ठी में यह भी कहा गया है कि वैसे भी बड़ों की तुलना में बच्चों के लिए वैक्सीनेशन का फायदा बहुत कम है। ट्रायल्स के बाद भी वैक्सीन के लंबे समय तक के प्रभाव अनजाने ही रहेंगे। इसमें ब्रिटेन का उदाहरण दिया गया है, जहां बच्चों को वैक्सीन न दिए जाने का फैसला लिया गया है। ब्रिटेन में केवल उन्हीं बच्चों को वैक्सीन दी जाएगी जिनकी प्रतिरोधक क्षमता बिल्कुल ही कम है। लेटर के मुताबिक दुनिया में कहीं भी 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वैक्सीन नहीं लग रही है, लेकिन स्कूल खोले जा रहे हैं। 

डेल्टा वैरिएंट के डर पर कहा यह
राज्यों को जारी इस पत्र में केंद्र सरकार ने डेल्टा वैरिएंट के डर पर भी बात की है। उसने कहा है कि अमेरिका समेत सभी जगहों पर इस समय डेल्टा वैरिएंट को लेकर चिंता है। केंद्र ने कहा है कि डेल्टा वैरिएंट सबसे पहले भारत में ही पाया गया था। यहां पर दो तिहाई आबादी पहले ही इससे प्रभावित हो चुकी है। इसमें 6 से 17 साल की उम्र वाले बच्चे भी हैं। इसलिए भारत में इसको लेकर बहुत ज्यादा डरने की जरूरत नहीं।

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