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मंगलवार, 30 जुलाई 2024

भगवान शिव के गले मे मुन्डमाला का रहस्य

 


           

पुराणों के अनुसार भोलेनाथ जो कुछ भी अपने शरीर पर धारण करते हैं, उसके पीछे कोई न कोई रहस्य छिपा है। शिव त्रिशूल, जटा, नाग, चंद्रमा, मुंडमाला आदि धारण करते हैं। देखे मंडमाला-


मुंडमाला इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है। पुराणों के अनुसार यह मुंडमाला शिव और सती के प्रेम की भी प्रतीक है। जब सती ने अग्नि में कूदकर आत्मदाह किया था तब शिव क्रोधित होकर तांडव करने लगे थे। यह शिव की ही लीला थी। भोलेनाथ स्वयं इस लीला के रचयिता थे। शिव ने सती को इसकी जानकारी पूर्व में दे दी थी। तभी शिव ने सती माता को मुंडमाला पहनने का राज बताया था।


*सिरों की है यह माला-*

    

शिव के गले में पड़ी यह माला 108 सिरों की हैं। एक बार नारद मुनि ने सती माता से पूछा कि माता शंकर भगवान अगर आपको सबसे अधिक प्रेम करते हैं तो उनके कंठ पर मुंडों की माला क्यों रहती है? नारद मुनि के उकसाने पर सती माता ने शिवजी से हठ करके माला का रहस्य जानना चाहा। काफी समझाने पर सती नहीं मानी तो शिव ने उन्हें बताया कि इस मुंड माला में सभी सिर आपके ही हैं। शिवजी ने कहा कि यह आपका 108 वां जन्म है। पहले भी आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं। ये मुंड उन्हीं जन्मों का प्रतीक हैं।इन नामों में मेरे इष्ट का नाम रा+म नहीं था बाद में पार्वती में (र) आ गया ।


*सती नहीं हो पाई थीं अमर-*

      

मुंडमाला पहनने का रहस्य जानकर सती माता ने शिव से कहा कि मैं तो बार-बार शरीर का त्याग करती हूं, लेकिन आप तो त्याग नहीं करते तब शिव ने उनसे कहा कि मुझे अमरकथा का ज्ञान है, इसलिए मुझे बार-बार शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता है। सती ने भी शिव से अमरकथा सुनने की इच्छा प्रकट की। मान्यता है, कि जब शिव सती को कथा सुना रहे थे तब सती पूरी कथा नहीं सुन पाईं और मध्य में ही सो गईं। फलस्‍वरूप उनको राजा दक्ष के यज्ञ में कूदकर आत्‍मदाह करना पड़ा।


*पार्वती को हुई अमरत्व की प्राप्ति-*

      

सती के आत्मदाह के बाद शंकर भगवान ने उनके शरीर के अंशों से 51 पीठों का निर्माण किया, लेकिन शिव ने सती के मुंड को अपनी माला में गूंथ लिया। इस तरह 108 मुंड की माला शिव ने पूर्ण करके धारण कर ली। हालांकि बाद में, सती का अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर का त्याग नहीं करना पड़ा।


 || शिव पार्वती जी की जय हो   ||

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